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नशे से बचने में बहुत ही मददगार पोस्ट

नशे से बचने में बहुत ही मददगार पोस्ट !*_

🔥 *नए साल के जश्न के माहौल में नशे से दूर व्यक्ति के दुबारा नशे की ओर जाने की संभावना होती है उसको ये सावधानियां रखनी चाहिए –

1. थकान (एग्ज़ॉशन) – खुद को बहुत ज्यादा थकान होने देना । यह आम तौर पर व्यक्तिगत निराशाओं का सामना न कर पाने के कारण खुद को काम में बहुत ज्यादा डूबो देने से होता है ।

2. बेइमानी (डिसऑनेस्टी) – इसकी शुरुआत छोटे-छोटे झूठ बोलने से होती है । फिर यह बात आगे बढ़ती है और खुद को धोखा देना और जो करना जरूरी है वह न करने के लिए बहाने बनाना शुरू हो जाता है ।

3. अधीरता (इम्पेशन्स) – मुझे जो चाहिए वह ‘अभी के अभी’ चाहिए । दूसरे लोग वह नहीं कर रहे हैं जो मुझे लगता है कि उन्होंने करना चाहिए या उस तरह नहीं जी रहे हैं, जो मुझे सही लगता है ।

4. बहसबाजी (आर्ग्यूमेंटेटिव) – छोटे से छोटा मुद्दा बड़ा बना दिया जाता और उसपर इस हद तक विवाद किया जाता है कि उसमें गुस्सा हावी हो जाता है ।

5. उदासी/भावनाएँ दबा देना (डिप्रेशन) – सभी गैर-लाजमी निराशाजनक विचारों को बाहर निकालना चाहिए और उनपर चर्चा करनी चाहिए, उन्हें दबाना नहीं चाहिए । उन भावनाओं का ‘सही-सही स्वरूप’ क्या है, यह समझना बहुत जरूरी है ।

6. निराशा/कुंठा (फ्रस्ट्रेशन) – जब चीजें आपने तय की है, उस प्रकार से नहीं होती हैं, ऐसी स्थितियों में नियंत्रित गुस्सा/नाराजगी । स्वीकार (एक्सेप्टन्स) का अभाव । क्र. 3 देखें ।

7. आत्म-दया – दूसरे अपने को तकलीफ दे रहे हैं, अपने को ही दूसरों के लिए बहुत ज्यादा करना पड़ रहा है, लोग अपना इस्तेमाल कर रहे हैं, अपनी कद्र नहीं कर रहे हैं यह भावनाएँ । “अपना तो नसीब ही खराब है” इस बात का यकीन होना ।

8. दुस्साहस/ अति-आत्मविश्वास (कॉकीनेस) – ‘सब समझ गया, सब आ गया’ वाला आवेश । सुरक्षित रूप से बस दिल बहलाने के लिए कहीं भी, यहाँ तक कि किसी बार में या शराब की पार्टियों में अक्सर जाना ।

9. संतुष्टि (कॉम्प्लेसेन्सी) – क्र. 8 ही की तरह दैनिक कार्यक्रम, मीटिंग्स, अन्य रिकवरिंग शराबियों (खासकर स्पॉन्सर) के साथ रहने का मूल्य न समझना, खुद को स्वस्थ समझना, सातवें आसमान पर रहना, सब बढ़िया चल रहा है ऐसा समझना । क्या पता, मैं पूरी तरह ठीक हो गया हूँ ऐसा मानना ।

10. दूसरों से ज्यादा अपेक्षाएँ रखना – वो मेरे दिल की बात समझते क्यों नहीं हैं ? मैं बदल गया हूँ, वो क्यों नहीं बदल रहे हैं ? काश उन्हें पता होता कि उनके लिए क्या सही है ! अपने को गलत समझा जा रहा है, अपनी कद्र नहीं हो रही है ऐसी भावना । क्र. 6 देखें ।

11. अनुशासन का पालन न करना – रिकवरी की बनी हुई आदतों – ध्यान, प्रार्थना, आध्यात्मिक पठन, ए.ए. के सबंधों, दैनिक इन्वेन्टरी, मीटिंगों – को तोड़कर अपनी दिनचर्या बिगाड़ देना । रिकवरी को ऊबाऊ (बोरिंग) होने देना और उसके लिए कोई उत्साह न रखना । कौन इतना सब करे ?

12. मनोदशा को बदलने वाली दवाइयाँ लेना – आने वाले एल्कोहोलिक रीलैप्स की असली समस्याओं को टालने के लिए, भले ही जायज़ वजह के लिए हो, लेकिन दवाइयों का गलत इस्तेमाल करना ।

13. बहुत ज्यादा की चाह रखना – अवास्तविक लक्ष्य तय करना, सफलता के छोटे-छोटे कदमों के बारे में न सोचना, भौतिक सफलता को बहुत ज्यादा मोल देना, आध्यात्मिक विकास को ज्यादा महत्व न देना ।

14. कृतज्ञता याद न रखना – ऊपर दी गई वजहों में से कइयों के कारण अपनी आम जिंदगी की अनगिनत कृपाओं को नजरअंदाज कर देना । क्र. 13 पर बहुत ज्यादा ध्यान देना ।

15. “मेरे साथ ऐसा नहीं हो सकता” – खुद को अजेय समझना । शराबियत की बीमारी और उसके बढ़ते हुए तरीके के बारे में हम जो जानते हैं, उसे भूल जाना ।

16. सर्वशक्तिमान समझना – ऊपर दिए गए कई रवैयों का संयोग । खतरे की निशानियों को नजरअंदाज करना, फेलो सदस्यों की चेतावनियों और सलाहों पर ध्यान नहीं देना ।

ऐक्रोन इंटरग्रुप न्यूज, दिसम्बर 1988

*(क्रिस्मस और आने वाले नए वर्ष के उपलक्ष्य में विशेष गौर करने लायक ।)*